हरिद्वार
जब कोई आदर्शों से भरा जीवन जीता है तो प्रेरणा का पुंज बन जाता है। स्वामी विवेकानंद ने भी जीवन को इसी तरह जिया। खासतौर पर युवाओं के लिए उनकी बातें और सीखें अनमोल हैं। उनके बताए रास्ते पर चलकर न सिर्फ सफलता प्राप्त की जा सकती है बल्कि देश और दुनिया के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा भी विवेकानंद देते हैं।
एक बार जब स्वामी विवेकानन्द जी विदेश गए, तो उनका भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा, – आपका बाकी सामान कहाँ है ?स्वामी जी बोले, ‘बस यही सामान है,.तो कुछ लोगों ने ब्यंग्य किया कि ,‘अरे! यह कैसी संस्कृति है आपकी ? तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है कोट – पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है ?इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराए और बोले, – ‘हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है, आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते है, जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है.- संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है,एक बार स्वामी विवेकानंद को विदेश में, जहाँ उनके स्वागत के लिए कई लोग आये हुए थे उन लोगों ने स्वामी विवेकानंद की तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढाया और इंग्लिश में HELLO कहा जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते कहा, उन लोगो को लगा की शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है तो उन लोगो में से एक ने हिंदी में पूछा “आप कैसे हैं”?? तब स्वामी जी ने कहा “आई एम् फ़ाईन थैंक यू”उन लोगो को बड़ा ही आश्चर्य हुआ उन्होंने स्वामी जी से पूछा की जब हमने आपसे इंग्लिश में बात की तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब हमने हिंदी में पूछा तो आपने इंग्लिश में कहा इसका क्या कारण है ??तब स्वामी जी ने कहा,जब आप अपनी माँ का सम्मान कर रहे थे तब मैं अपनी माँ का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी माँ का सम्मान किया तब मैंने आपकी माँ का सम्मान किया.यदि किसी भी भाई बहन को इंग्लिश बोलना या लिखना नहीं आता है तो उन्हें किसी के भी सामने शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है बल्कि शर्मिंदा तो उन्हें होना चाहिए जिन्हें हिंदी नहीं आती है क्योंकि हिंदी ही हमारी राष्ट्र भाषा है हमें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए की हमें हिंदी आती है।





